हास्य के अदभूत कवि सुरेन्द्र दुबे जी को सुनने और उनके साथ कविता पडने का सौभाग्य मुझे पिछ्ले दिनों खंडवा कवि सम्मेलन मे मिला. जब वे कविता पडने के लिए खडे हुए तो उन्होनें काव्यरसिकों से कह दिया कि मैं आपको चुट्कले नहीं सुनाऊगा.आप मुझसे कविता सुनिए. ये सुन कर मैं तो उन्हें देखता ही रह गया. कारण था कि आज के दौर में हर कवि चुटकलों से ही रचनाकर्म शुरु करता है उस दौर में सुरेन्द्र जी ने पच्चीस हजार लोगों के सामने सिर्फ़ कविता ही पडने की बात कही इसके बाद सुरेन्द्र जी ने सतत दो घंटे कवितांए पडी. और कव्यरसिक हास्य की गंगा में गोते लगाते रहे.ऎसे अदभूत कवि के प्रति पुरा काव्य जगत नतमस्तक है सुरेन्द्र जी के कविता के इस समर्पण को शत शत नमन........ कुमार संभव गीतकार
हास्य के अदभूत कवि सुरेन्द्र दुबे जी को सुनने और उनके साथ कविता पडने का सौभाग्य मुझे पिछ्ले दिनों खंडवा कवि सम्मेलन मे मिला. जब वे कविता पडने के लिए खडे हुए तो उन्होनें काव्यरसिकों से कह दिया कि मैं आपको चुट्कले नहीं सुनाऊगा.आप मुझसे कविता सुनिए.
ReplyDeleteये सुन कर मैं तो उन्हें देखता ही रह गया.
कारण था कि आज के दौर में हर कवि चुटकलों से ही रचनाकर्म शुरु करता है उस दौर में सुरेन्द्र जी ने पच्चीस हजार लोगों के सामने सिर्फ़ कविता ही पडने की बात कही
इसके बाद सुरेन्द्र जी ने सतत दो घंटे कवितांए पडी. और कव्यरसिक हास्य की गंगा में गोते लगाते रहे.ऎसे अदभूत कवि के प्रति पुरा काव्य जगत नतमस्तक है
सुरेन्द्र जी के कविता के इस समर्पण को शत शत नमन........
कुमार संभव
गीतकार
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ReplyDeleteअरुण मित्तल अद्भुत
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