Thursday, November 19, 2015

जाँच रिपोर्ट-तीन

गलती से ही सही लेकिन हमारी सरकार ने एक जोरदार काम किया। उस विमान को बहादुरीपूर्वक बचा लिया, जिसका अपहरण ही नहीं हुआ।
सारी रात हड़कम्प मचा रहा और सुबह यह पता चला कि विमान में अपहरणकर्ताओं का कुछ पता नहीं चला। गलतफहमी में ही अफरातफरी मच गई। बेचारे कमाण्डोज, डॉक्टर्स और फायर ब्रिगेड वाले ही नहीं देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री तक पूरी रात परेशान रहे।
खैर, मैंने इस समूची घटना की राष्ट्रहित में गम्भीरतापूर्वक जांच करके रिपोर्ट पेश की तो उसे पढ़कर जिस गलतफहमी की वजह से यह घटना घटी उस गलतफहमी तक को गलतफहमी हो गई!
मेरी समूची जांच रिपोर्ट इस प्रकार थी-
देश में कुल मिलाकर ठीक-ठाक हवाई अड्डे तीन- उनमें से भी दो तो बन्द रहते हैं और एक खुलता ही नहीं।
जो हवाई अड्डा खुलता ही नहीं, उस पर हवाई जहाज खड़े तीन- उनमें से भी दो तो खराब और एक उड़ता ही नहीं ।
जो हवाई जहाज उड़ता ही नहीं, उसे नियंत्रित करने वाले कंट्रोल टॉवर तीन- उनमें से भी दो तो फिजूल और एक पर खुद का ही कन्ट्रोल नहीं।
जिस कंट्रोल टॉवर पर खुद का ही कन्ट्रोल नहीं, उस पर तैनात सरकारी अधिकारी भी तीन- उनमें दो तो गायब और एक मिलता ही नहीं।
जो सरकारी अधिकारी मिलता ही नहीं, उसने संदेश भेजे तीन- उनमें से दो तो गलत और एक पहँुचा ही नहीं।
जो संदेश पहँुचा ही नहीं, उसे रिसीव करने वाले पायलट भी तीन- उनमें से भी भी दो तो बहरे और एक सुनता ही नहीं।
 जो पायलट सुनता ही नहीं, उसे दिखे अपहरणकर्ता तीन-  उनमें से भी दो तो अदृश्य और एक के शक्ल ही नहीं।
जिस अपहरणकर्ता के शक्ल ही नहीं, उसे पहचानने वाले पेसेंजर भी तीन-उनमें से भी दो तो बेवकूफ और एक के अक्ल ही नहीं।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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