हमारे नेताओं और क्रिकेटरों में कम से कम एक फर्क तो जरूर है। वह यह कि हमारे नेता अक्ल के पीछे लट्ठ लेकर घूमते हैं और हमारे क्रिकेटर लट्ठ के पीछे अक्ल लेकर। घूमते दोनों ही है। कई बार तो ये घूमते-घूमते इतना घूम जाते हैं कि इन्हें देखकर 'यू टर्न' भी शर्मसार हो जाता है।
कुछ भी हो परिणाम एक ही है। यहाँ सरकार की दुर्गति हो रही है तो मैदानों में भारतीय क्रिकेट टीम की। इनकी परफोरमेंस से जनता निराश है तो उनकी परफोरमेंस से क्रिकेट प्रेमी हताश हैं। लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद हमारी भारत सरकार की प्रमुख पार्टी अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार गई। उधर घरेलू पिचों पर कुछ मैच जीतने के बाद हमारी क्रिकेट टीम विश्वकप में अपना सूपड़ा साफ करवा बैठी।
दरअसल सरकार और क्रिकेट टीम दोनों की दशा और दिशा एक जैसी है। कप्तान अगर अच्छा खेलता है तो टीम के बाकी सदस्य फिसड्डी साबित होते हैं। लेकिन जब टीम के बाकी सदस्य ठीक-ठाक प्रदर्शन करते हैं तो कप्तान लीद कर देता है। भारतीय क्रिकेट टीम में फिटनेस की समस्या है तो सरकार के मंत्रीमंडल में फाइटनेस की। नेताओं और क्रिकेटरों का फिटनेस लेवल सिर्फ इतना सा है कि वे आपस में फाइट करने के अलावा और कुछ कर ही नहीं सकते।
सबसे बड़ी समस्या तो कोच और सोच की है। सरकार के पास कोच है ही नहीं तो सोच कहाँ से आएगी? उधर भारतीय क्रिकेट में कोच की सोच ही सबसे बड़ी समस्या साबित हुई है। दोनोंं का मिडिल ऑर्डर हमेशा दबाव में रहता है। यहांँ मंत्रीमंडल के गठन को लेकर विवाद है तो वहाँ टीम के गठन को लेकर। दोनों में बारहवांँ खिलाड़ी तक कप्तान बनने की जुगत भिड़ाता रहता है।
क्रिकेट टीम में कुछ खिलाड़ी टीम पर बोझ बने हुए हैं तो इधर कुछ मंत्री सरकार पर भार हैं। लेकिन इस बोझ को अगर हटा दें तो इधर सरकार उड़ जाएगी और उधर टीम बिखर जाएगी।
कथनी और करनी का अन्तर दोनों ही जगहों पर मौजूद है। क्रिकेटर बात तो 'सकारात्मक क्रिकेट' खेलने की करते हैं लेकिन मैदान में उतरते ही 'सरकारात्मक क्रिकेट' खेलने लगते हैं। उधर हमारे प्रधानमंत्री 'क्रिकेटात्मक सरकार' चलाने के लिए मजबूर हैं।
दोनों ही कम बोलते हैं। दोनों ही विनम्र हैं। दोनों ही अक्सर हार जाने के अभ्यासी हैं लेकिन दोनों ही टीम की जीत के लिए एकल प्रयास करते हुुए दिखाई देते हैं। सामने वाली टीम के अधिक खराब प्रदर्शन की वजह से कभी कभार एक-आध मैच भी जीत लेते हैं। दोनों की अपने-अपने चयनकर्ताओं के साथ सैटिंग इतनी तगड़ी है कि इनका प्रदर्शन चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, इन्हें हटाया नहीं जा सकता।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
कुछ भी हो परिणाम एक ही है। यहाँ सरकार की दुर्गति हो रही है तो मैदानों में भारतीय क्रिकेट टीम की। इनकी परफोरमेंस से जनता निराश है तो उनकी परफोरमेंस से क्रिकेट प्रेमी हताश हैं। लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद हमारी भारत सरकार की प्रमुख पार्टी अनेक राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार गई। उधर घरेलू पिचों पर कुछ मैच जीतने के बाद हमारी क्रिकेट टीम विश्वकप में अपना सूपड़ा साफ करवा बैठी।
दरअसल सरकार और क्रिकेट टीम दोनों की दशा और दिशा एक जैसी है। कप्तान अगर अच्छा खेलता है तो टीम के बाकी सदस्य फिसड्डी साबित होते हैं। लेकिन जब टीम के बाकी सदस्य ठीक-ठाक प्रदर्शन करते हैं तो कप्तान लीद कर देता है। भारतीय क्रिकेट टीम में फिटनेस की समस्या है तो सरकार के मंत्रीमंडल में फाइटनेस की। नेताओं और क्रिकेटरों का फिटनेस लेवल सिर्फ इतना सा है कि वे आपस में फाइट करने के अलावा और कुछ कर ही नहीं सकते।
सबसे बड़ी समस्या तो कोच और सोच की है। सरकार के पास कोच है ही नहीं तो सोच कहाँ से आएगी? उधर भारतीय क्रिकेट में कोच की सोच ही सबसे बड़ी समस्या साबित हुई है। दोनोंं का मिडिल ऑर्डर हमेशा दबाव में रहता है। यहांँ मंत्रीमंडल के गठन को लेकर विवाद है तो वहाँ टीम के गठन को लेकर। दोनों में बारहवांँ खिलाड़ी तक कप्तान बनने की जुगत भिड़ाता रहता है।
क्रिकेट टीम में कुछ खिलाड़ी टीम पर बोझ बने हुए हैं तो इधर कुछ मंत्री सरकार पर भार हैं। लेकिन इस बोझ को अगर हटा दें तो इधर सरकार उड़ जाएगी और उधर टीम बिखर जाएगी।
कथनी और करनी का अन्तर दोनों ही जगहों पर मौजूद है। क्रिकेटर बात तो 'सकारात्मक क्रिकेट' खेलने की करते हैं लेकिन मैदान में उतरते ही 'सरकारात्मक क्रिकेट' खेलने लगते हैं। उधर हमारे प्रधानमंत्री 'क्रिकेटात्मक सरकार' चलाने के लिए मजबूर हैं।
दोनों ही कम बोलते हैं। दोनों ही विनम्र हैं। दोनों ही अक्सर हार जाने के अभ्यासी हैं लेकिन दोनों ही टीम की जीत के लिए एकल प्रयास करते हुुए दिखाई देते हैं। सामने वाली टीम के अधिक खराब प्रदर्शन की वजह से कभी कभार एक-आध मैच भी जीत लेते हैं। दोनों की अपने-अपने चयनकर्ताओं के साथ सैटिंग इतनी तगड़ी है कि इनका प्रदर्शन चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, इन्हें हटाया नहीं जा सकता।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
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