Monday, October 19, 2015

सस्ती हवाई यात्रा की मस्ती

प्राइवेट एयर लाइन्स ने किराया कम करके हवाई यात्राओं का चरित्र ही बदल दिया है। अब जरूरत नहीं है कि आपके बोर्डिंग कार्ड पर आपको सीट नं. अलॉट किए जाएँ। कई एयर लाइन्स ऐसी भी हैं जो 'पहले आओ-पहले पाओ' की नीति अपना रही हैं। ऐसे में बेचारे पेसेंजर को भागकर विमान में घुसना पड़ता है। पिछले दिनों मुझे भी ऐसा ही करना पड़ा। मैं बैठने के लिए एक खाली सीट की तरफ लपका तो मैंने देखा कि उस सीट पर एक रुमाल बिछा हुआ है। पड़ौस की सीट पर बैठे पेसेंजर ने मुझे बताया कि यह सीट उसने अपने साथी के लिए रोक रखी है। मैं समझ गया कि बस यात्रा की महान परम्पराएँ हवाई यात्रा में आ पहुँची हैं।
खैर, मुझे भी एक सीट मिलनी थी सो मिल गई। हवाई यात्रा के चरित्र में हुए इस बदलाव पर सोचते-सोचते मेरी आँख लग गई। नींद में सपने में मुझे अजीब दृश्य दिखाई दिए। अब मैं अनुमान लगा चुका था कि इस बदलाव का भविष्य क्या है? धीरे-धीरे जब बसों और रेलों में यात्रा करने के अभ्यस्त लोग कम किराए की वजह से हवा में उडऩे लगेंगे तो हवाई यात्रा की संस्कृति कितनी बदल जाएगी? जो दृश्य सपने में मैंने देखे वे आपको दिखा रहा हूँ।
दृश्य-1
टेक ऑफ करने के लिए रनवे पर रेंगते हुए हवाई जहाज को एक पेसेंजर ने हाथ का इशारा करके रोक लिया है। वह हाँफता हुआ विमान में चढ़ कर पायलट से कह रहा कि पाँच मिनट रोकना तीन पेसेंजर और आ रहे हैं। विमान का कप्तान नकद पैसे लेकर उसका टिकट बना रहा है। खुले पैसे न होने के कारण उसने टिकट के कोने पर गोला बनाकर बकाया राशि लिख दी है। उसने पेसेंजर से कह दिया है अभी खुले पैसे नहीं है। उतरो तब याद करके ले लेना। वह बेचारा इस टेंशन में सफर कर रहा है कि उतरते वक्त कहीं मैं बकाया रकम लेना न भूल जाऊँ?
दृश्य-2
बस और ट्रेन की तरह विमान में तीन-चार लोग चढ़ आए हैं उनमें से कोई अकबर-बीरबल के किस्सों की किताब बेच रहा है तो कोई मुसम्मी का ज्यूस निकालने की मशीन। कोई पेन बेच रहा है तेा कोई मल्टीपरपज दंतमंजन। दंतमंजन बेचने वाला दाँत में से हाथों हाथ कीड़े निकालने का दावा कर रहा है। एक पेसेंजर उसके झाँसे में आ गया है। उसने एक दाँत से कीड़ा निकालने की बजाय दाँत ही निकाल दिया है। सचमुच स्काई शॉपिंग का फ्यूचर बड़ा ब्राइट है।
दृश्य-3
पेसेंजर बैठे-बैठे टाइम पास करने के लिए मूंगफली खा-खा कर छिलके गिरा रहे हैं। रेलों की तरह एक लड़का सफाई करने आया है उसे देखकर एक महिला दूसरी महिला से कह रही है कि चप्पल सँभाल कर रख। पिछली बार जब मैं कोलकाता जा रही थी तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा और चप्पल गायब हो गई। सफाई करने वाले ने छिलके बुहारने के बाद पेसेंजर्स के सामने पैसे के लिए अपना हाथ फैला दिया है। कोई उससे कह रहा है कि आगे चल, हमने थोड़े ही बुलाया है तुझे?
दृश्य-4
हवाई यात्रा के लिए जाते हुए बेटे को माँ समझा रही है कि उड़ते हवाई जहाज की खिड़की में से हाथ बाहर मत निकालना। अपनी जेब का ध्यान रखना मैंने सुना है कि आजकल हवाई जहाज में जेबकतरे ज्यादा सफर करते हैं। कुछ जेबकतरे तो इतने उस्ताद है कि वे बैंकों और सरकार तक की जेब काट लेते हैं।
दृश्य-5
सफर के दौरान अचानक एक ढफली वाला आ गया है जो पुराने गाने, भजन और कव्वाली सुना रहा है। जो पेसेंजर उसे आगे जाने की कहता है वह उसी के सामने ढफली को उलटकर पैसे की माँग करता है। पेसेंजर भन्ना जाता है लेकिन फिर कुछ छोटे नोट डालकर अपना पिण्ड छुड़ाता है।
तभी मेरी आँख खुल गई। भूख लगी थी तो नाश्ता खरीदना पड़ा। प्राइवेट एयरलाइन्स में नाश्ता खरीदने में मुझे तकलीफ हुई। क्योंकि हवाई यात्रा के दौरान मुफ्त का नाश्ता करने की आदत जो पड़ चुकी थी।
आदमी चाहे जितनी भी तरक्की कर ले मुफ्तखोरी की आदत उससे नहीं छूटती।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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