सचमुच कितनी भोली-भाली और सीधी-सादी लड़की है-उस नई फिल्म की नई नवेली नायिका। बेचारी कुछ भी तो नहीं छिपाती। इतनी सीधी-सच्ची और अच्छी लड़की के बारे में लोग पता नहीं क्यों कैसी-कैसी बातें करते रहते हैं? देह प्रदर्शन को लेकर, सपने में राखी से खुलकर बातें हुई। प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न- आप पर आरोप है कि आप अंग प्रदर्शन के सहारे शोहरत की सीढिय़ाँ चढ़ रही है?
उत्तर- अंग तो शरीर के हिस्से हैं और शरीर नश्वर है। अब इसेे क्या तो छिपाना और क्या दिखाना? मैं ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देती। मेरी नजर में शरीर का कोई महत्व नहीं है। महत्व सिर्फ आत्मा का है। आप भी इस तरह से क्यों नहीं सोचते?
प्रश्न- लेकिन इतने कम कपड़े पहनना तो अश्लीलता के दायरे में आता है। आप अपने ड्रेस सेंस के बारे में क्या कहेंगी?
उत्तर- बड़े-बड़े अनेक महापुरूष ऐेसे हुए हैं जिन्होंने कपड़ों को बिल्कुल महत्व नहीं दिया। मैं भी बड़ा बनना चाहती हूँ तो क्या गलत करती हूँ।
प्रश्न- लेकिन शर्मीली लड़कियों की तरह आप शालीन ड्रेस क्यों नहीं पहनती?
उत्तर- आप समझे नहीं। आपका दिमाग अभी भी शरीर पर अटका हुआ है। जन्म से पहले और मृत्यु के बाद इस बेचारे शरीर का अस्तित्व ही नहीं रहता। ये बेचारा, कुछ समय के लिए है। फिर इस पर ज्यादा कपड़े क्यों लादे? जब शरीर साथ नहीं जाएगा तो उस पर लादे गए कपड़े भी तो यहीं पर रह जाएँगे कि नहीं? क्षण भंगुर देह के अति-क्षण भंगुर परिधान को इतना महत्व देकर आप तो परेशान हैं ही, मुझे क्यों परेशानी में डालना चाह रहे हैं?
प्रश्न- लेकिन लोगों को इस पर बहुत ऐतराज है।
उत्तर- मुझे तो लोगों के अधिक कपड़े पहनने पर बिल्कुल ऐतराज नहीं है। जिन्हेंं मेरे कम कपड़ों पर ऐतराज है वे पहन लें मेरे हिस्से के अधिक कपड़े। अगर मैं ज्यादा कपड़े पहनने लगी तो मेरे प्रशंसकों के प्रति मेरी ओर से भावनात्मक हिंसा होगी जिसे मैं कभी भी स्वीकार नहीं कर सकती।
प्रश्न- आप अपने प्रशंसकों के बारे में क्या कहेंगी?
उत्तर- बड़े बहादुर लोग हैं वे। लाखों की भीड़ में जान हथेली पर रखकर आते हैं। लाठीचार्ज भी हो सकता है। गोली भी चल सकती हैं लेकिन वे इसकी परवाह न करते हुए मेरा डांस देखने आते हैं। मुझे उनकी भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए सो मैं रखती हूँ। मैं ऐसा नहीं करूँगी तो वे भी हिंसक हो सकते हैं। जिसे आप बार-बार देह प्रदर्शन कह रहे हैं वह तो मेरी अहिंसा के प्रति आस्था है जिसका उद्देश्य ही परोपकार है।
प्रश्न- एक तरफ तो आप अहिंसा की बात करती हैं और दूसरी तरफ आपके शो में लाठीचार्ज होता है। बेचारे दर्शक लहुलुहान हो जाते हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
उत्तर- जो हुआ अच्छा हुआ। जो हो रहा है अच्छा ही है। आगे जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। सबका अपना-अपना प्रारब्ध है। मैं इसमें क्या कर सकती हूँ? लाठियाँ खाकर मेरे प्रशंसकों को उतनी तकलीफ नहीं होगी जितनी तकलीफ मुझे ज्यादा कपड़ों में देखकर होगी।
प्रश्न- सुना है कि विद्वानों की संगति में रहकर आपका आध्यात्म की तरफ रुझान बढ़ रहा है?
उत्तर- हाँ, मैं विद्वानों की बातों को आचरण में ढालने की कोशिश करती हूँ। इसीलिए तो व्यवहार, ज्ञान, आचरण देह सभी को आवरण से मुक्त रखने की कोशिश करती हूँ।
प्रश्न- लेकिन आपके तर्क मेरे गले क्यों नहीं उतर पा रहे हैं?
उत्तर- गले में उतारने हैं तो गले को साफ करो उतर जाएँगे। लेकिन दिमाग में समझने हों तो किसी कवि की ये पंक्तियाँ सुन लो। सारी बात समझ में आ जाएगी।
यह न प्रकाशित हो पाएगी, खबर किसी अखबार में।
सारी नर्तकी नाची, अंधों के दरबार में।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
प्रश्न- आप पर आरोप है कि आप अंग प्रदर्शन के सहारे शोहरत की सीढिय़ाँ चढ़ रही है?
उत्तर- अंग तो शरीर के हिस्से हैं और शरीर नश्वर है। अब इसेे क्या तो छिपाना और क्या दिखाना? मैं ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देती। मेरी नजर में शरीर का कोई महत्व नहीं है। महत्व सिर्फ आत्मा का है। आप भी इस तरह से क्यों नहीं सोचते?
प्रश्न- लेकिन इतने कम कपड़े पहनना तो अश्लीलता के दायरे में आता है। आप अपने ड्रेस सेंस के बारे में क्या कहेंगी?
उत्तर- बड़े-बड़े अनेक महापुरूष ऐेसे हुए हैं जिन्होंने कपड़ों को बिल्कुल महत्व नहीं दिया। मैं भी बड़ा बनना चाहती हूँ तो क्या गलत करती हूँ।
प्रश्न- लेकिन शर्मीली लड़कियों की तरह आप शालीन ड्रेस क्यों नहीं पहनती?
उत्तर- आप समझे नहीं। आपका दिमाग अभी भी शरीर पर अटका हुआ है। जन्म से पहले और मृत्यु के बाद इस बेचारे शरीर का अस्तित्व ही नहीं रहता। ये बेचारा, कुछ समय के लिए है। फिर इस पर ज्यादा कपड़े क्यों लादे? जब शरीर साथ नहीं जाएगा तो उस पर लादे गए कपड़े भी तो यहीं पर रह जाएँगे कि नहीं? क्षण भंगुर देह के अति-क्षण भंगुर परिधान को इतना महत्व देकर आप तो परेशान हैं ही, मुझे क्यों परेशानी में डालना चाह रहे हैं?
प्रश्न- लेकिन लोगों को इस पर बहुत ऐतराज है।
उत्तर- मुझे तो लोगों के अधिक कपड़े पहनने पर बिल्कुल ऐतराज नहीं है। जिन्हेंं मेरे कम कपड़ों पर ऐतराज है वे पहन लें मेरे हिस्से के अधिक कपड़े। अगर मैं ज्यादा कपड़े पहनने लगी तो मेरे प्रशंसकों के प्रति मेरी ओर से भावनात्मक हिंसा होगी जिसे मैं कभी भी स्वीकार नहीं कर सकती।
प्रश्न- आप अपने प्रशंसकों के बारे में क्या कहेंगी?
उत्तर- बड़े बहादुर लोग हैं वे। लाखों की भीड़ में जान हथेली पर रखकर आते हैं। लाठीचार्ज भी हो सकता है। गोली भी चल सकती हैं लेकिन वे इसकी परवाह न करते हुए मेरा डांस देखने आते हैं। मुझे उनकी भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए सो मैं रखती हूँ। मैं ऐसा नहीं करूँगी तो वे भी हिंसक हो सकते हैं। जिसे आप बार-बार देह प्रदर्शन कह रहे हैं वह तो मेरी अहिंसा के प्रति आस्था है जिसका उद्देश्य ही परोपकार है।
प्रश्न- एक तरफ तो आप अहिंसा की बात करती हैं और दूसरी तरफ आपके शो में लाठीचार्ज होता है। बेचारे दर्शक लहुलुहान हो जाते हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
उत्तर- जो हुआ अच्छा हुआ। जो हो रहा है अच्छा ही है। आगे जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। सबका अपना-अपना प्रारब्ध है। मैं इसमें क्या कर सकती हूँ? लाठियाँ खाकर मेरे प्रशंसकों को उतनी तकलीफ नहीं होगी जितनी तकलीफ मुझे ज्यादा कपड़ों में देखकर होगी।
प्रश्न- सुना है कि विद्वानों की संगति में रहकर आपका आध्यात्म की तरफ रुझान बढ़ रहा है?
उत्तर- हाँ, मैं विद्वानों की बातों को आचरण में ढालने की कोशिश करती हूँ। इसीलिए तो व्यवहार, ज्ञान, आचरण देह सभी को आवरण से मुक्त रखने की कोशिश करती हूँ।
प्रश्न- लेकिन आपके तर्क मेरे गले क्यों नहीं उतर पा रहे हैं?
उत्तर- गले में उतारने हैं तो गले को साफ करो उतर जाएँगे। लेकिन दिमाग में समझने हों तो किसी कवि की ये पंक्तियाँ सुन लो। सारी बात समझ में आ जाएगी।
यह न प्रकाशित हो पाएगी, खबर किसी अखबार में।
सारी नर्तकी नाची, अंधों के दरबार में।।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 20 जनवरी 2018 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!