एड्स के प्रति अवेयरनेस के लिए कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए हॉलीवुड स्टार रिचर्ड गेर और बॉलीवुड की स्टारनी शिल्पा शेट्टी दिलवालोंं की दिल्ली में अचानक दिल्लगी करने लगे। आए तो वे अवेयरनेस के निमित्त थे लेकिन शो के दौरान आपस में अफेयरनेस कर बैठे।
'सीना तान के उत्सव' नामक इस कार्यक्रम में ज्यों ही शिल्पा ने सीना ताना, बिना देर किए रिचर्ड गेर ने ऐसा हेर-फेर किया कि बेचारी शिल्पा ढेर होते-होते बची। उसने सरे आम 'मिस' को 'किस' किया और दर्शकों ने किस को मिस किया। खलबली मचनी थी,मची। वे सोचने लगे कि अपनों के रहते ये गैर कहाँ से आ टपका। टपका सो तो टपका वह बिग ब्रदर की स्वीट सिस्टर पर सरे आम इस तरह क्यों लपका? लिहाजा उन्हें संस्कृति की रक्षा के लिए सड़कों पर आना पड़ा। बहुत दिनों से सुस्त पड़े संस्कृति सेवियों को काम मिल गया। क्रिया दिल्ली में हुई और प्रतिक्रिया मुम्बई समेत अनेक शहरों में। संस्कृति सेवियों ने दोनों के पुतले फूँक कर 'कार्यक्रम' का 'क्रियाकर्म' कर दिया।
रिचर्ड पर चर्ड-चर्ड करता हुआ संस्कृति सेवी मेरे पास आया। मैंनें उससे उसकी इस ताजा भन्नाहट का कारण पूछा तो उसने बताया कि भारतीय संस्कृति का अपमान उसे बहुत बुरा लग रहा है। मैंने पूछा ''जब खुद शिल्पा को ही बुरा नहीं लग रहा है तो तुम क्यों फिजूल में परेशान हो?'' बोला-''उसे क्यों बुरा लगेगा? वह कोई भारतीय नारी की प्रतीक थोड़े ही है।'' मैंने कहा-''जब शिल्पा भारतीय नारी की प्रतीक है ही नहीं तब उसकी किसी भी ऊल-जलूल हरकत से भारतीय संस्कृति का अपमान कैसे हो सकता है?''
उसने समझाया-''भारतीय संस्कृति पर इसका बुरा प्रभाव पडऩा तय है। हमारे टीवी चैनल्स को जब कभी कोई 'हॉट सीन' मिल जाता है तब उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा हो। वे उस सीन को लगातार दिखाते ही रहते हैें। इधर हमारे नासमझ बच्चे दिन-रात टीवी से चिपके रहते हैं। अब आप ही बताओ उसे देखकर बच्चे बिगडेंगे कि नहीं? बच्चे बिगड़ गए तो संस्कृति कैसे बचेगी?''
मैंने उसके प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ठोक दिया और पूछा-''बच्चों के बिगडऩे-सुधरने की स्टेज तो बाद में आएगी। आप पहले यह क्यों नहीं सोचते कि एड्स के प्रति जागरुक न होने पर हमारे बच्चे बचेंगे कि नहीं?'' वह बोला-''जो भी हो मुझे तो बहुत बुरा लग रहा है।'' मैंने कहा-''दोस्त! अच्छा तो मुझे भी नहीं लग रहा है। लेकिन जिस जागरुकता का विषय ही सैक्स हो उसमें 'किस' से कम क्या किया जा सकता है? भारतीय संस्कृति के दायरे में रहते हुए एड्स के प्रति जागरुकता पैदा करने का क्या तरीका हो सकता है?''
मेरे सवाल का जवाब शायद उसके पास नहीं था, इसलिए वह मुझे बुरा-भला कहता हुआ किसी दूसरे शिकार की तलाश में चल दिया।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
'सीना तान के उत्सव' नामक इस कार्यक्रम में ज्यों ही शिल्पा ने सीना ताना, बिना देर किए रिचर्ड गेर ने ऐसा हेर-फेर किया कि बेचारी शिल्पा ढेर होते-होते बची। उसने सरे आम 'मिस' को 'किस' किया और दर्शकों ने किस को मिस किया। खलबली मचनी थी,मची। वे सोचने लगे कि अपनों के रहते ये गैर कहाँ से आ टपका। टपका सो तो टपका वह बिग ब्रदर की स्वीट सिस्टर पर सरे आम इस तरह क्यों लपका? लिहाजा उन्हें संस्कृति की रक्षा के लिए सड़कों पर आना पड़ा। बहुत दिनों से सुस्त पड़े संस्कृति सेवियों को काम मिल गया। क्रिया दिल्ली में हुई और प्रतिक्रिया मुम्बई समेत अनेक शहरों में। संस्कृति सेवियों ने दोनों के पुतले फूँक कर 'कार्यक्रम' का 'क्रियाकर्म' कर दिया।
रिचर्ड पर चर्ड-चर्ड करता हुआ संस्कृति सेवी मेरे पास आया। मैंनें उससे उसकी इस ताजा भन्नाहट का कारण पूछा तो उसने बताया कि भारतीय संस्कृति का अपमान उसे बहुत बुरा लग रहा है। मैंने पूछा ''जब खुद शिल्पा को ही बुरा नहीं लग रहा है तो तुम क्यों फिजूल में परेशान हो?'' बोला-''उसे क्यों बुरा लगेगा? वह कोई भारतीय नारी की प्रतीक थोड़े ही है।'' मैंने कहा-''जब शिल्पा भारतीय नारी की प्रतीक है ही नहीं तब उसकी किसी भी ऊल-जलूल हरकत से भारतीय संस्कृति का अपमान कैसे हो सकता है?''
उसने समझाया-''भारतीय संस्कृति पर इसका बुरा प्रभाव पडऩा तय है। हमारे टीवी चैनल्स को जब कभी कोई 'हॉट सीन' मिल जाता है तब उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा हो। वे उस सीन को लगातार दिखाते ही रहते हैें। इधर हमारे नासमझ बच्चे दिन-रात टीवी से चिपके रहते हैं। अब आप ही बताओ उसे देखकर बच्चे बिगडेंगे कि नहीं? बच्चे बिगड़ गए तो संस्कृति कैसे बचेगी?''
मैंने उसके प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ठोक दिया और पूछा-''बच्चों के बिगडऩे-सुधरने की स्टेज तो बाद में आएगी। आप पहले यह क्यों नहीं सोचते कि एड्स के प्रति जागरुक न होने पर हमारे बच्चे बचेंगे कि नहीं?'' वह बोला-''जो भी हो मुझे तो बहुत बुरा लग रहा है।'' मैंने कहा-''दोस्त! अच्छा तो मुझे भी नहीं लग रहा है। लेकिन जिस जागरुकता का विषय ही सैक्स हो उसमें 'किस' से कम क्या किया जा सकता है? भारतीय संस्कृति के दायरे में रहते हुए एड्स के प्रति जागरुकता पैदा करने का क्या तरीका हो सकता है?''
मेरे सवाल का जवाब शायद उसके पास नहीं था, इसलिए वह मुझे बुरा-भला कहता हुआ किसी दूसरे शिकार की तलाश में चल दिया।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
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