Saturday, October 24, 2015

हँसते-हँसाते पानी बचाओ

पानी बचाने की जागरूकता के लिए चलाए गए अभियान अब खुद पानी माँगने लगे हैं। इस मुद्दे पर पहले भी कई पानीदार सरकारों का पानी उतर चुका है। कितने ही एन.जी.ओ. पानी-पानी होकर रह गए। लेकिन ये जागरूकता है कि लोगों के बीच आने को तैयार ही नहीं है।
इस चुनौती भरे काम को करने के लिए मैंने रिसर्च की। मेरी रिसर्च ये है कि हम अपनी लाइफ स्टाइल में रोचक बदलाव लाकर हँसने-हँसाने का आनन्द भी उठा सकते हैंं और पानी भी बचा सकते हैं। इसके लिए मैंने कई 'स्किल्स' इजाद की है। हमें उन 'स्किल्स' को अपनाना होगा। हँसते-हँसाते पानी बचाना होगा। वरना वैज्ञानिक तो पहले से ही चेतावनी दे चुके है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। वह भी तब जबकि धरती के दो तिहाई भाग पर पानी ही पानी है। मेरी इस अतिमहत्वपूर्ण रिसर्च की समरी इस प्र्रकार है।
टेक्नीक नम्बर वन-पानी बचाने का सर्वाधिक आसान और रोचक तरीका यह है कि सब लोग अपने-अपने बाल कटवाकर गंजे हो जाओ। बालों मेंं साबुन रह जाता है। ऐसे में नहाते समय बाल धोने में पानी ज्यादा बर्बाद होता है। औरतों के बाल तो और भी ज्यादा लम्बे होते हैं। इसलिए दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचाने के लिए उन्हें भी गंजा हो ही जाना चाहिए। फिर हमेें एक दूसरे को देखने में कितना मजा आएगा। चारों ओर टकले ही टकले दिखाई देंगे। टकलियों को अलग से पहचानना मुश्किल होगा इससे जेेन्डर से जुड़ा भेदभाव भी समाप्त होगा। इसे कहते हैं एक पंथ दो काज।
मेरी यह रिसर्च पता नहीं कैसे लीक होकर एन.जी.ओ. के एक एक्टीविस्ट तक पहुँच गई। उसने इसे तुरंत लपक लिया। सबसे पहले तो उसने खुद के सिर के बाल कटवाए। और अब जेब में उस्तरा लिए डोल रहा है ताकि लोगों को गंजा करके पानी बचाने की प्रेरणा दे सके। सुना है कि  उसने कई स्वयं सेवी हेयरड्रेसर्स का संगठन बनाकर पानी बचाने का एक प्रोजेक्ट भी समिट कर दिया है। आशा है कि सरकार उस प्रोजेक्ट को जल्दी ही हरी झण्डी दे देगी। चुनावी वर्ष में सारे काम फटाफट होने हैं।
टेक्नीक नम्बर टू-जब हम फुल स्लीव की शर्ट पहनते हैं तो उसे धोते समय कोहनी से कलाई तक की आस्तीन को धोने में पानी की फिजूल खर्ची होती है। इसे रोकने के लिए हमें हाफ स्लीव की शर्ट पहननी चाहिए। हम जेन्डर का भेद भाव किए बिना सोचें। चाहे तो स्लीव लेस शर्ट पहनें। चाहे तो विश्व हित में शर्ट न भी पहने। केवल बनियान से काम चलाए पानी तो बचेगा ही । सोचिए कितना आनन्ददायक दृश्य उपस्थित होगा। जिसकी कल्पना मात्र से ही आनन्द आ रहा है उसे साकार होते देखने में सचमुच सबको कितनी हँसी आएगी। हम एक-दूसरे को देखकर हँसेंगे और सब हमें देखकर। आपको कम कपड़े में जो लड़के-लड़की नजर आ रहे हैं वे फैशन के कारण ऐसा नहीं कर रहे हैं। दरअसल वे पानी बचाने के लिए मेरी रिसर्च अपना रहे हैं।
टेक्नीक नम्बर थ्री- हमारी रोज नहाने की आदत ठीक नहीं है। इससे पानी बर्बाद होता है। पानी बचाने के लिए स्नान सिर्फ साप्ताहिक हो। चाहें तो पति-पत्नी एक साथ नहाएँ। इससे पानी भी बचेगा तथा उनके पारस्परिक संबंध भी सुधरेंगे।
इस क्रान्तिकारी रिसर्च को सुनते ही मेरे एक दोस्त के भीतर भी एक आइडिया कुलबुलाने लगा। उसने कहा कि हम टायलेट में फ्लश का बटन दबाते हैं तो फ्लश के डिब्बे में भरा तीन-चार लीटर एक साथ बह जाता है। अगर हम उस डिब्बे में मिनरल वाटर की एक बोतल डाल देें तो एक लीटर पानी कम भरेगा। डिब्बे में एक लीटर पानी कम भरा तो बटन दबाने पर एक लीटर पानी कम बहेगा। मान लो दिन भर में हम दस बार फ्लश का बटन दबाते हैं तो बचा कि नहीं दस लीटर पानी?
दोस्त ने बेहतरीन आइडिया दिया लेकिन वह आइडिया था, इसलिए मैंने नहीं लिया। यहाँ आइडिए की क्या वेल्यू? वेलेबल तो रिसर्च होती है। आइडिया तो ऐसे होता है जैसे कि सड़क पर घूमता हुआ नंगा आदमी। रिसर्च उस रईस की तरह होती है जो जून की दोपहर में भी सूट पहनकर निकलता है। तभी से मैं अपने हर आइडिए को रिसर्च कहता हूँ।
खैर, मैंने उस आइडियाबाज को यह कहकर चुप कर दिया कि पहले पानी तो हो जिसे बचाया जाए। समस्या ये है कि जब पानी ही नहीं है तो हम किसे बचाएं। अपना आइडिया अपने पास रखो। अपनी रिसर्च जीवित रहे इसलिए मैंने उसके आइडिए की हत्या कर दी। यहाँ आदमी के मरने पर भी कोई नहीं रोता तो किसी आइडिए के मरने पर कौन आँसू बहाए? हम पानी बचाने की बात उन लोगों को कहते हैं जिनके पास अपनी जरूरत से कम पानी है। जिनके पास जरूरत से ज्यादा पानी है उन्हें अगर पानी बचाने की बात बताते तो जागरूकता का ये मिशन कभी का कामयाब हो जाता।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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