वैसे प्रॉब्लम और गर्लफ्रेण्ड में कोई खास फर्क नहीं होता। गर्लफ्रेण्ड खुद अपने आप मेें एक प्रॉब्लम होती है जो अपने आप बॉयफ्रेण्ड के गले पड़ी रहती है। प्रॉब्लम भी गर्लफ्रेण्ड की तरह हर पल आपके आस-पास मौजूद रहकर नया टेंशन क्रिएट करती रहती है।
मेरी भी एक गर्लफ्रेण्ड है- मिस अनछुई। उसका अफेयर तो मेरे साथ चला लेकिन शादी किसी और के साथ हो गई। शादी के बाद वे मेरे बराबर वाले मकान में आकर रहने लगे। प्रेम से रहना उसके बस की बात थी नहीं, सो वे आपस में झगड़े बिना रह ही नहीं सकते थे। एक रात चिल्लाने की आवाजें सुनकर मैं अचानक जागा तो पता चला कि वे गाली-गलौच में राष्ट्रीय स्तर की शब्दावली पर उतर आए हैं। मैं इस स्थिति का चुपचाप मजा लेता रहा। मौका दर मौका उनकी गृहस्थी को बाहर से समर्थन भी देता रहा।
मेरे और उनके घर के बीच एक दुबली-पतली अधबनी दीवार है। इस दीवार को बनते और मिटते हुए सभी ने अनेक बार देखा है। पड़ौसियों की राय में वही नियंत्रण रेखा है।
मेरी भलमनसाहत की असलियत जब उसके हजबेण्ड की समझ में आई तो वह बहुत भन्नाया। इसके अलावा वह और कर भी क्या सकता था। पहले तो उसने मुझे चेताया लेकिन जब मैं नहीं माना वह झल्लाया। एक दिन उसने मोहल्ले के जिम्मेदार लोगों के सामने मेरी एक्टीविटीज को 'क्रॉस बॉर्डर टेरेरिज्म' बताया।
एक दिन पति-पत्नी में लड़ाई छिड़ गई। बढ़ते-बढ़ते बात इतनी बढ़ गई कि शोर-शराबे को सुनकर घर के बाहर भीड़ जमा हो गई। पड़ौसियों की मौजूदगी में पति ने पत्नी से कहा कि आज से लड़ाई बन्द कर दो। इसी में हम दोनों की भलाई है। अब मैं तुम्हारी बातों और हरकतों पर रिएक्ट नहीं करुँगा। अगले एक सप्ताह तक अपनी इस घोषणा पर कायम रहूँगा। उस क्राइसिस में ऐसा प्रपोजल देना सचमुच बहादुरी भरा काम था। बाद में पता चला कि कूटनीति की भाषा में यह पति द्वारा किया गया एक तरफा संघर्ष विराम था।
जब उस एक तरफा संघर्ष विराम का कोई खास नतीजा नहीं आया तो पति ने पत्नी से कहा कि बातचीत के लिए टेबल पर आओ। पत्नी बोली कि मैं बातचीत के लिए तब ही टेबल पर आ सकूंगी जब तुम मेरे प्रेमी को भी बातचीत मेें शामिल करो, अर्थात् वार्ता को त्रिपक्षी बनाओ।
बेचारा-बेसहारा पति जो हर कीमत पर अपने घर में शान्ति चाहता था, यह शर्त कैसे मानता? ऐसा लगने लगा कि अचानक दिखाई देने वाला रास्ता दुर्गम पहाड़ी दर्रोंं में कहीं खो गया है। एक खुशहाल मोहल्ले में उसके घर का हाल कश्मीर समस्या जैसा हो गया। ताजा समाचार यह है कि शान्ति की कब्र पर अशान्ति का परचम फहरा रहा है। उनसठ वर्षों में लोग कश्मीर में जाकर घर तो नहीं बना सके हैं लेकिन घर-घर में कश्मीर अब दबे पाँव चला आ रहा है।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
मेरी भी एक गर्लफ्रेण्ड है- मिस अनछुई। उसका अफेयर तो मेरे साथ चला लेकिन शादी किसी और के साथ हो गई। शादी के बाद वे मेरे बराबर वाले मकान में आकर रहने लगे। प्रेम से रहना उसके बस की बात थी नहीं, सो वे आपस में झगड़े बिना रह ही नहीं सकते थे। एक रात चिल्लाने की आवाजें सुनकर मैं अचानक जागा तो पता चला कि वे गाली-गलौच में राष्ट्रीय स्तर की शब्दावली पर उतर आए हैं। मैं इस स्थिति का चुपचाप मजा लेता रहा। मौका दर मौका उनकी गृहस्थी को बाहर से समर्थन भी देता रहा।
मेरे और उनके घर के बीच एक दुबली-पतली अधबनी दीवार है। इस दीवार को बनते और मिटते हुए सभी ने अनेक बार देखा है। पड़ौसियों की राय में वही नियंत्रण रेखा है।
मेरी भलमनसाहत की असलियत जब उसके हजबेण्ड की समझ में आई तो वह बहुत भन्नाया। इसके अलावा वह और कर भी क्या सकता था। पहले तो उसने मुझे चेताया लेकिन जब मैं नहीं माना वह झल्लाया। एक दिन उसने मोहल्ले के जिम्मेदार लोगों के सामने मेरी एक्टीविटीज को 'क्रॉस बॉर्डर टेरेरिज्म' बताया।
एक दिन पति-पत्नी में लड़ाई छिड़ गई। बढ़ते-बढ़ते बात इतनी बढ़ गई कि शोर-शराबे को सुनकर घर के बाहर भीड़ जमा हो गई। पड़ौसियों की मौजूदगी में पति ने पत्नी से कहा कि आज से लड़ाई बन्द कर दो। इसी में हम दोनों की भलाई है। अब मैं तुम्हारी बातों और हरकतों पर रिएक्ट नहीं करुँगा। अगले एक सप्ताह तक अपनी इस घोषणा पर कायम रहूँगा। उस क्राइसिस में ऐसा प्रपोजल देना सचमुच बहादुरी भरा काम था। बाद में पता चला कि कूटनीति की भाषा में यह पति द्वारा किया गया एक तरफा संघर्ष विराम था।
जब उस एक तरफा संघर्ष विराम का कोई खास नतीजा नहीं आया तो पति ने पत्नी से कहा कि बातचीत के लिए टेबल पर आओ। पत्नी बोली कि मैं बातचीत के लिए तब ही टेबल पर आ सकूंगी जब तुम मेरे प्रेमी को भी बातचीत मेें शामिल करो, अर्थात् वार्ता को त्रिपक्षी बनाओ।
बेचारा-बेसहारा पति जो हर कीमत पर अपने घर में शान्ति चाहता था, यह शर्त कैसे मानता? ऐसा लगने लगा कि अचानक दिखाई देने वाला रास्ता दुर्गम पहाड़ी दर्रोंं में कहीं खो गया है। एक खुशहाल मोहल्ले में उसके घर का हाल कश्मीर समस्या जैसा हो गया। ताजा समाचार यह है कि शान्ति की कब्र पर अशान्ति का परचम फहरा रहा है। उनसठ वर्षों में लोग कश्मीर में जाकर घर तो नहीं बना सके हैं लेकिन घर-घर में कश्मीर अब दबे पाँव चला आ रहा है।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
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