यूथ की लाइफ स्टाइल में गांधीजी के जीवन मूल्यों की झलक दिखाने की जोर-शोर से हो रही चर्चा सुनकर मैं अक्सर टेंशन में आ जाता हूँ। सोचने लगता हूँ कि आखिर गड़बड़ कहाँ हो गई है। गाँधी जी के जीवन मूल्यों में या फिर यूथ की लाइफ स्टाइल में?
मेरे साथ कोई सर्किट तो रहता नहीं जो पता लगाकर बताए। इसलिए मैंने खुद ही सोचना शुरु कर दिया। सोचते-सोचते जब मैं किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो मेरे 'माइन्ड' में 'केमिकल लोचा' हो गया।
जो चीज होती ही नहीं है, उसके होने का बोध करने के लिए हमारे यहाँ रिसर्च की जाती है। इसलिए सर्च करने पर भी जब मुझे यूथ की लाइफ स्टाइल में गाँधी जी के जीवन मूल्यों के दर्शन नहीं हुए तो मैंने इस पर रिसर्च शुरु कर दी। शोध करते ही मुझे यह बोध हो गया कि हमारा आज का यूथ गाँधी जी के जीवन मूल्यों का साक्षात 'पाकेट बुक एडीशन' है। अर्थात् अच्छा-सच्चा संक्षिप्त और सारगर्भित गाँधीवादी।
गाँधी जी ने 'देश की आजादी' की लड़ाई लड़ी और हमारा आज का यूथ 'खुद की आजादी' की लड़ाई लड़ रहा है। आजादी के प्रति उसकी ललक ठीक गाँधी जी जैसी ही है। इसलिए भले ही पूरी तरह से ना सही लेकिन खुद के अनुकूल मामलों में तो वह संक्षिप्त गाँधीवादी ही है।
अहिंसा में आज के यूथ की अटूट आस्था है। इसलिए वे ज्यादातर बातें मोबाइल फोन पर ही करना पसंद करते हैं। वह तुनक मिजाजी जो वे मोबाइल फोन पर बतियाते हुए करते हैं अगर आमने-सामने करने लगें तो हिंसा की सम्भावना बढ़ जाएगी। कितनी खूबसूरती से एडजस्ट किया है आज के यूथ ने अहिंसा को अपनी लाइफ स्टाइल में।
मोबाइल फोन पर जब वह किसी दूसरे को मिसकॉल देता है, तो उसे कड़का या कंजूस समझना सरासर गलत है। मिसकॉल के जरिये वह शरारत नहीं अपितु सत्याग्रह करता है। मिसकॉल यानी सामने वाले को एक अत्यन्त विनम्र आग्रह कि सत्य को जानने के लिए मुझे कॉल बैक करो। सत्याग्रह गांधी जी की तकनीक थी और मिस कॉल, गाँधीजी की उस तकनीक को अपनाने के निमित्त हमारे यूथ की मौलिक तकनीक।
गाँधी जी के ड्रेस-सेन्स की खासियत यह थी कि वे यथासम्भव कम से कम कपड़े पहनते थे। हमारा आज का यूथ भी अपने बदन पर ज्यादा कपड़े लादना पसन्द नहीं करता। वह गाँधी जी के ड्रेस-सेन्स का मर्म समझता है, इसलिए कम से कम कपड़ों में काम चलाना अपना धर्म समझता है।
गाँधी जी जीवन विज्ञान को अधिक महत्व देते थे, किताबी ज्ञान को नहीं। उनके इस विचार को स्वीकार करने की वज़ह से वह किताबों को ज्यादा कष्ट नहीं देता, जीवन की अन्य समस्याओं के समाधान के लिए सतत अनुसंधानशील रहता है। अपनी आत्मकथा में गाँधी जी ने अपनी हैंडराइटिंग $खराब होने पर अफसोस व्यक्त किया था। हैंडराइटिंग तो हमारे आज के यूथ की भी अच्छी नहीं है। गाँधी जैसी ही है। लेकिन उस पर अफसोस व्यक्त करने का वक्त और अवसर उसके पास नहीं है।
विभिन्न आन्दोलनों का संचालन एवं नेतृत्व करना गाँधी जी की महानता का परिचायक है। हमारे यूथ ने गाँधी जी की इस खूबी को तगड़े ढंग से ग्रहण किया है। इसलिए वह एडमीशन से लेकर एग्जामिनेशन तक आन्दोलित ही रहता है। अपनी माँगों को लेकर वह तब तक धरना देता है जब तक कि पुलिस उसे उठाकर थाने में धर ना दे।
हाँ, एक बात वह गाँधी जी की नहीं भी मानता। वह यह कि कोई अगर तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो। यहाँ उसका गाँधी जी से क्लीयरकट मतभेद है। वह साफ कहता है कि-
जो तौ कू काँटा बोए, ताइ बोव तू भाला।
वह भी याद रखेगा भइया पड़ा किसी से पाला॥
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com
मेरे साथ कोई सर्किट तो रहता नहीं जो पता लगाकर बताए। इसलिए मैंने खुद ही सोचना शुरु कर दिया। सोचते-सोचते जब मैं किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँचा तो मेरे 'माइन्ड' में 'केमिकल लोचा' हो गया।
जो चीज होती ही नहीं है, उसके होने का बोध करने के लिए हमारे यहाँ रिसर्च की जाती है। इसलिए सर्च करने पर भी जब मुझे यूथ की लाइफ स्टाइल में गाँधी जी के जीवन मूल्यों के दर्शन नहीं हुए तो मैंने इस पर रिसर्च शुरु कर दी। शोध करते ही मुझे यह बोध हो गया कि हमारा आज का यूथ गाँधी जी के जीवन मूल्यों का साक्षात 'पाकेट बुक एडीशन' है। अर्थात् अच्छा-सच्चा संक्षिप्त और सारगर्भित गाँधीवादी।
गाँधी जी ने 'देश की आजादी' की लड़ाई लड़ी और हमारा आज का यूथ 'खुद की आजादी' की लड़ाई लड़ रहा है। आजादी के प्रति उसकी ललक ठीक गाँधी जी जैसी ही है। इसलिए भले ही पूरी तरह से ना सही लेकिन खुद के अनुकूल मामलों में तो वह संक्षिप्त गाँधीवादी ही है।
अहिंसा में आज के यूथ की अटूट आस्था है। इसलिए वे ज्यादातर बातें मोबाइल फोन पर ही करना पसंद करते हैं। वह तुनक मिजाजी जो वे मोबाइल फोन पर बतियाते हुए करते हैं अगर आमने-सामने करने लगें तो हिंसा की सम्भावना बढ़ जाएगी। कितनी खूबसूरती से एडजस्ट किया है आज के यूथ ने अहिंसा को अपनी लाइफ स्टाइल में।
मोबाइल फोन पर जब वह किसी दूसरे को मिसकॉल देता है, तो उसे कड़का या कंजूस समझना सरासर गलत है। मिसकॉल के जरिये वह शरारत नहीं अपितु सत्याग्रह करता है। मिसकॉल यानी सामने वाले को एक अत्यन्त विनम्र आग्रह कि सत्य को जानने के लिए मुझे कॉल बैक करो। सत्याग्रह गांधी जी की तकनीक थी और मिस कॉल, गाँधीजी की उस तकनीक को अपनाने के निमित्त हमारे यूथ की मौलिक तकनीक।
गाँधी जी के ड्रेस-सेन्स की खासियत यह थी कि वे यथासम्भव कम से कम कपड़े पहनते थे। हमारा आज का यूथ भी अपने बदन पर ज्यादा कपड़े लादना पसन्द नहीं करता। वह गाँधी जी के ड्रेस-सेन्स का मर्म समझता है, इसलिए कम से कम कपड़ों में काम चलाना अपना धर्म समझता है।
गाँधी जी जीवन विज्ञान को अधिक महत्व देते थे, किताबी ज्ञान को नहीं। उनके इस विचार को स्वीकार करने की वज़ह से वह किताबों को ज्यादा कष्ट नहीं देता, जीवन की अन्य समस्याओं के समाधान के लिए सतत अनुसंधानशील रहता है। अपनी आत्मकथा में गाँधी जी ने अपनी हैंडराइटिंग $खराब होने पर अफसोस व्यक्त किया था। हैंडराइटिंग तो हमारे आज के यूथ की भी अच्छी नहीं है। गाँधी जैसी ही है। लेकिन उस पर अफसोस व्यक्त करने का वक्त और अवसर उसके पास नहीं है।
विभिन्न आन्दोलनों का संचालन एवं नेतृत्व करना गाँधी जी की महानता का परिचायक है। हमारे यूथ ने गाँधी जी की इस खूबी को तगड़े ढंग से ग्रहण किया है। इसलिए वह एडमीशन से लेकर एग्जामिनेशन तक आन्दोलित ही रहता है। अपनी माँगों को लेकर वह तब तक धरना देता है जब तक कि पुलिस उसे उठाकर थाने में धर ना दे।
हाँ, एक बात वह गाँधी जी की नहीं भी मानता। वह यह कि कोई अगर तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी आगे कर दो। यहाँ उसका गाँधी जी से क्लीयरकट मतभेद है। वह साफ कहता है कि-
जो तौ कू काँटा बोए, ताइ बोव तू भाला।
वह भी याद रखेगा भइया पड़ा किसी से पाला॥
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)
सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख
सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
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