Friday, September 25, 2015

महिमा मॉर्निंग वॉक की

मॉर्निंग वॉक के किस्से बड़े दिलचस्प हैं। मैं सैंट्रल पार्क में रोज सुबह टहलने जाता हूँ। ज्यादातर लोग एक-दूसरे को पहचानने लगते हैं। एक दिन स्त्री-पुरुष का एक नया जोड़ा टहलने आया। पुरुष तो नजारे देखने में व्यस्त था और स्त्री बोलने में। स्त्री लगातार बोल रही थी और पुरुष अनमने मन से सुनने का अभिनय कर रहा था। मैं झट समझ गया कि इन दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता है। दो दिनों तक निरंतर यही क्रम चला। तीसरे दिन पति कानों में ईयर फोन लगाकर टहल रहा था लेकिन पत्नी फिर भी बोले जा रही थी। चौथे दिन मैंने देखा कि पत्नी यह देखने में व्यस्त थी कि उसका पति किन-किन को देखने में व्यस्त है। जैसे ताक-झाँक वैसे ही वाक-झाँक।
मॉर्निंग वॉक की महिमा अपार है। घूमने का घूमना और देखने का देखना। सैंट्रल पार्क में मॉर्निंग वॉक करते हुए मुझे पता ही नहीं चलता कि कुछ लोग मुझे देख रहे हैं। कारण यह कि उस समय मैं तो खुद दूसरों को देख रहा होता हूँ। मुझे तो अब तक सिर्फ यही पता चल पाया कि मैं जिनको देख रहा होता हूँ वो किन्हीं औरों को देख रहे होते हैं। इसी भ्रम में मॉर्निंग वॉक का पूरा समय गुजर जाता है कि मैं तो सबको देख रहा हूँ लेकिन मुझे कोई नहीं देख रहा है।
मोटापे की वजह से मेरी रफ्तार अक्सर धीमी होती है। इसलिए अपनी स्पीड को लेकर मैं हमेशा कॉम्पलेक्स का शिकार रहता हूँ। एक दिन मैंने अपनी रफ्तार बढ़ाई। वाकिंग ट्रेक पर अपने से आगे चल रहे आदमी को मैंने ओवरटेक कर दिया। मेरी प्रसन्नता अभी शुरू भी नहीं हो पाई थी कि इतने में एक-एक करके तीन आदमी मुझे ओवरटेक करते हुए आगे निकल गए। मैं समझ गया कि कोई विजय प्रसन्नता के लायक नहीं है तथा कोई भी पराजय ऐसी नहीं है जिस पर शोक करके बैठना पड़े। हमें तो सिर्फ यथासामथ्र्य चलते रहना होता है। क्योंकि पहुँचता वही है जो निरंतर चलता रहता है। ऑब्जर्वेशन,अनालिसिस और कन्क्लूजन की शार्पनेस मॉर्निंग वॉक से ही आती है।
मनुष्य के जीवन की सफलता के सारे रहस्य उसकी लाइफ स्टाइल में छिपे हुए हैं और लाइफ स्टाइल की सार्थकता के सारे रहस्य छिपे हुए हैं मॉर्निंग वॉक में। आदमी दिन भर दौड़ता है ताकि वह समय के साथ चल सके। क्योंकि समय ही भगवान है। दिन भर लगातार दौड़कर भी मनुष्य जिस समय को पकड़ नहीं पाता मॉर्निंग वॉक करने वाले सुबह उठते ही उसे पकड़ लेते हैं। दिन भर पकड़े रहते हैं। शाम पड़ते-पड़ते तो समय भी उनके चंगुल से मुक्त होने के लिए छटपटाने लगता होगा। लेकिन वे सोने का समय होने तक समय का पिण्ड नहीं छोड़ते। तभी तो कहते हैं कि व्यस्त आदमी के पास हर काम के लिए समय होता है। फालतू आदमी के पास खुद के लिए भी समय नहीं होता।
मॉर्निंग वॉक यानी सुबह पैदल चलना ताकि बॉडी की फिटनेस का लेवल हाई रहे। हमारे ऋषि मुनि जानते थे इसलिए सुबह निपटने के लिए दो-तीन किलोमीटर दूर पैदल जाते थे। उस फिटनेस के बल पर वे सैकडों वर्षों तक जीवित रहते थे। वनवास के दौरान भगवान श्री राम ने पैदल चल-चलकर अपनी बॉडी का फिटनेस लेवल इतना बढ़ा लिया कि रावण को मारने में उन्हें कोई खास प्रॉब्लम नहीं आई। ऐसा ही फिटनेस लेवल कृष्ण जी ने गायें चराते समय पैदल चलकर प्राप्त किया था तभी एक ही बॉक्सिंग में कंस जैसे राक्षस को ठण्डा कर दिया। पाण्डवों की जीत में भी फिजीकल फिटनेस का ही रहस्य छिपा हुआ है। ये फिटनेस उन्होंने वनवास के दौरान पैदल चलकर प्राप्त की थी। वे जानते थे कि वाहन का उपयोग करने से बॉडी अनफिट हो जाती है। द्वापर और त्रेता युग में ही क्यों कलयुग में ही देख लो। गाँधीजी ने दांडी मार्च समेत अनेक पैदल यात्राएँ की। फिजीकल और मेंटल फिटनेस का लेवल इतना हाई हो गया कि बिना लाठी चलाए अंग्रेजों को भगा दिया।
मेरे एक दोस्त ने कहा- तुम्हारी थ्योरी गलत है। घोड़ा खूब दौड़ता है, कुत्ता खूब पैदल चलता है। दोनों दस पंद्रह साल से ज्यादा जीवित नहीं रहते। अजगर पड़ा रहता है और सौ साल जीवित रहता है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि पैदल चलने या दौडऩे से उम्र कम होती है। मैंने कहा दोस्त मेरी थ्योरी मनुष्यों के लिए है और तुम्हारी जानवरों के लिए। इसलिए मॉर्निंग वॉक मनुष्यों की दिनचर्या का आभूषण है। मैं तो अपनी कह रहा हूँ तुम्हारी तुम जानो।

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की प्रकाशित पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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