Monday, September 28, 2015

जब मैंने अम्पायरिंग की

अगर बेईमानी करने के लिए ही अम्पायर बनाना हो तो फिर मैं कहाँ किसी से कम हूँ। बकनर ने तो बाद में बेईमानी सीखी होगी, मैं तो जन्मजात बेईमान हूँ। शराबियों की भाषा में कहें तो नीट बेईमान। पता नहीं अब तक आईसीसी की नजर मुझ जैसे काबिल बेईमान पर क्यों नहीं पड़ी? नर तो मैं हूँ ही। बक-बक करने की आदत भी है। फिर मैं कहाँ किसी बकनर से कम हूँ। समझाने पर यह बात आईसीसी की समझ में भी आ सकती है। क्योंकि वह चाहे तो किसी अन्धे को भी अम्पायर बना सकती है। आईसीसी मेहरबान तो बकनर पहलवान।
अम्पायरिंग के भविष्य को रोशन करने की मैंने भी बहुत कोशिशें की, भले ही क्रिकेट का भविष्य अंधेरे में क्यों न चला जाए।
 अम्पायरिंग में आदमी का कैरियर होता ही शानदार है। मैच में कोई जीते-हारे, अम्पायर पर फर्क नहीं पड़ता। छोटे से छोटा और नए से नया अम्पायर बड़े से बड़े खिलाड़ी को हड़का सकता है लेकिन बड़े से बड़ा खिलाड़ी छोटे से छोटे अम्पायर को हड़का नहीं सकता। खिलाड़ी तो चोटिल होकर अनफिट हो सकता है लेकिन अम्पायर के केस में ऐसा कभी नहीं होता। टीवी पर भी मैच के दौरान अम्पायर को किसी भी खिलाड़ी की तुलना में ज्यादा दिखाया जाता है। टीवी चैनल्स की भाषा में कहूँ तो अम्पायर की टी.आ.पी. किसी भी खिलाड़ी की तुलना में हाई होती है। अगर आपको किसी क्रिकेटर को आशीर्वाद देना हो तो यों कहें-''भगवान तुझे अम्पायर बनाए। जिसे आईसीसी के सिवा कोई हिला नहीं पाए। भलेे ही क्रिकेट की नींव हिल जाए।''
आखिरकार सिडनी में अम्पायर आउट हो गया। क्रिकेट के इतिहास में ऐसा दूसरी बार हुआ। पहली बार तब हुआ जब अपने मोहल्ले की क्रिकेट में मैंने अपने अम्पायरिंग के कैरियर का आगाज किया। अम्पायरिंग में मेरा कैरियर कुल मिलाकर एक ओवर लम्बा चला क्योंकि क्रिकेट में बेबी ओवर फेंकने की व्यवस्था तो है, बेबी अम्पायरिंग की व्यवस्था नहीं है। फिर अपने ही मोहल्ले की क्रिकेट में अम्पायरिंग करना हँसी खेल नहीं है। किराने वाले को आऊट दे दो तो अगले ही दिन से उधार मिलना बन्द। कपड़े प्रेस करने वाले को आउट दे दो तो अगले ही दिन वह आपके नए सूट में छेद कर सकता है। दूध वाले को आउट दे दो तो वह दूध में पानी की जगह पानी में दूध मिलाने लगे। बाल काटने वाले को आउट दे दो तो वह बाल की जगह आपका गाल काट दे। कुल मिलाकर अपने मोहल्ले की क्रिकेट में अम्पायरिंग के साइड इफेक्ट्स बेहद खतरनाक हैं।
खैर, मैं पूरी हिम्मत के साथ मैदान में अम्पायरिंग करने के लिए उतरा। जिसका डर था वही हुआ। मेरी गली के कप्तान ने टास जीतकर बैटिंग करने का फैसला किया और ओपनिंग बेट्समैन के रूप में मेरा साला बैटिंग करने के लिए मुझसे गार्ड ले रहा था। साला बेट्स मैन और जीजा अम्पायर। पहली ही गेंद पर एल बी डब्ल्यू की जोरदार अपील हुई। मैं टस से मस न हुआ। दूसरी गेंद उसके बल्ले का किनारा लेते हुए विकेटकीपर के दस्तानों में समा गई। फिर मैंने अपील को नकार दिया। तीसरी गेंद पर विकेट कीपर ने उसे स्टम्प आउट कर दिया। लेग अम्पायर ने उस पर ध्यान नहीं दिया। मेरी मुश्किलें बढ़ती जा रही थी। दर्शक दीर्घा में बैठी हुई मेरी पत्नी बैनर की जगह बेलन हिला रही थी। चौथी गेंद वाइड थी पर मैंने उसे वाइड घोषित नहीं किया। पाँचवी गेंद पर वह हिट विकेट हुआ तो मैंने उसे नो बॉल डिक्लेयर किया।
अगली गेंद पर बेट्समैन बीट हुआ। अब आखिरी गेंद बची थी। उस ओवर की नहीं, मेरे अम्पायरिंग के कैरियर की। बॉलर ने उसे क्लीन बोल्ड कर दिया। फील्डिंग करने वाली टीम ने शोर मचाया ''हाऊ इज ही।'' बॉलर ने पूछा ''एनी डाउट?'' मैंने खुद की तरफ उंगली उठाते हुए कहा अम्पायर आउट। मैंने तो क्रिकेट के हित में रिटायरमेंट ले लिया लेकिन क्या सिडनी टेस्ट के अम्पायर क्रिकेट के हित में ऐसा नहीं कर सकते?

सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)

सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की प्रकाशित पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

सम्पर्क : 0141-2757575
मोबाइल : 98290-70330
ईमेल : kavidube@gmail.com  

No comments:

Post a Comment