Wednesday, September 30, 2015

मोटापा जिन्दाबाद

अजगर की हस्ती, भैंसे की सुस्ती और मगरमच्छ की मस्ती अगर एक ही जगह देखनी हो तो आप मेरे जैसे किसी मोटे के दर्शन कर सकते हैं। आपको मनवांछित फल प्राप्त होगा। मोटे लोग अक्सर मस्त किस्म के जीव होते हैंं। वे जिस मोटापे से परेशान रहते हैं उसी का भरपूर आनंद भी उठाते हैं। यह दुर्लभ गुण आपको दुबले-पतले मच्छरनुमा छीजू लोगों मेें प्राय: नहीं मिलेगा।
अपने मोटापे से तंग आकर मैंने प्राकृतिक चिकित्सालय की शरण ली। वहाँ अनेक वरिष्ठ मोटों की संगत में रहकर मुझे अपना वजन घटाना था। कुछ सम्पूर्ण मोटे तो कुछ तोन्दू मोटे। मैं एक आकस्मिक मोटा, उनके नाना प्रकार के रूपों से परिचित हुआ। कुछ मोटे तो इतने मोटे हैं कि मुझे उनके साथ रहने मात्र से 'स्लिम' होने का बोध प्राप्त होता रहता है। यही वजह है कि मैं लम्बे समय तक उपचार लेने के मूड में हूँ। मोटे-मोटियों के उस जमघट में मेरा मोटापा अक्सर शर्मसार रहता है।
मोटे लोगों की मस्ती और हस्ती बेमिसाल होती है। अपने मोटापे से त्रस्त एक मस्त मोटे ने मुझे मोटापे के लाभ गिनाए। पहला तो यह कि किसी भी मोटे का कभी भी बुढ़ापा नहीं आता है क्योंकि बेचारा जवानी में ही मर जाता है। दूसरा यह कि मोटे लोगों के घर पर चोरी होने की सम्भावना कम रहती है क्योंकि उन्हें गहरी नींद आती ही नहीं। तीसरा लाभ यह कि मोटे लोगों के बेडोल शरीर पर नए फैशन के महँगे कपड़े बड़े भद्दे लगते हैं अत: उन्हें मजबूरी में साधारण किस्म के कपड़े पहनने पड़ते हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति ठीक रहती है। मोटापे का चौथा फायदा यह है कि वे अक्सर घर पर ही पड़े रहना पसन्द करते हैं इसलिए बाहर कम निकलते हैं। गाड़ी कम चलानी पड़ती है। इससे पेट्रोल की बचत होती है तथा प्रदूषण भी कम फैलता है। इस प्रकार विदेशी मुद्रा की बचत में वे देश की अर्थव्यवस्था में अपना अमूल्य योगदान देते रहते हैं। इसलिए राष्ट्र की प्रगति में मोटे लोगों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। इतना कहते-कहते वह खुद ठहाका लगाकर हँसने लगा। फिर कुछ रुककर बोला इसीलिए हमारा नारा है-'मोटापा जिन्दाबाद।'
मैंने उससे पूछा कि जब मोटापे के इतने फायदे है तथा मोटापे में महानता का निवास है तब आप पतला होने के लिए इतने प्रयास क्यों कर रहे हैं? जवाब में वह कहने लगा कि यद्यपि मोटोपे के बहुत लाभ है लेकिन त्याग भी तो कोई चीज है। त्याग करने वालों की महिमा और भी बड़ी है इसलिए साधु-सन्तों के उपदेशों पर अमल करते हुए मैं अपने मोटापे का त्याग करने पर आमादा हूँ। उसका तर्क सुनकर मैं भी हंँसे बिना नहीं रह सका। मैं सोचने लगा कि हम हिन्दुस्तानियों के पास और कुछ भी हो न हो लेकिन हर बात का माकूल जवाब जरूर होता है।
एक मोटे ने उपचार से लाभ न होने की शिकायत की। मैंने पूछा कि क्या खाते-पीते हो? वह बोला कि सुबह उठते ही तीन चाय, फिर थोड़ी देर बाद चार पराठों का नाश्ता, दोपहर में लंच करके सो जाता हूँ। तीसरे पहर में उठतेे समय कम से कम दो चाय तो पीनी ही पड़ती है। चाय के साथ बिस्किट-नमकीन तो होते ही हैं। फिर दोस्तों से मिलने निकल जाता हूँ। अच्छे दोस्त अच्छा ही खिलाते हैं तो कुछ खा लेता हूँ। मनुहार तो रखनी ही पड़ती है। रात को डिनर करके सो जाता हूँ। बस इससे ज्यादा कुछ भी नहीं खाता। आजकल डाइटिंंग पर हूँ इसलिए। मैंने पूछा कि डॉक्टर ने क्या ये खुराक बताई है? वह बोला-हाँ, इन सब के अलावा वह तो खाता ही हूँ। लेकिन उसे मेडिसिन मानकर खाता हूँ। वह खाने की श्रेणी में नहीं आती। मैंने कहा दोस्त! इसी तरह खाते-पीते रहो। काम के नाम पर सिर्फ आराम करो। मोटापा कायम रहेगा। सारे रोग तुम्हारा आभार मानेंगे क्योंकि अगर मोटापा नहीं रहता तो बेचारे रोग बेघर नहीं हो जाएँगे?


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)

सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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