Thursday, October 15, 2015

फिल्मी डायरी के अंश-दंश

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मैं फिल्मों के बारे में उतना ही जानता हूँ जितना कि फिल्म वाले साहित्य के बारे में जानते हैं। अज्ञानता में मामला टक्कर का है। यदा-कदा वे साहित्य की टाँग तोड़ते रहते हैं और मैं फिल्मों की। मैं छोटे और बड़े पर्दे की गतिविधियों पर निरंतर लिखता रहता हूँ क्योंकि आजकल लिखने के लिए हमारे यहाँ जानना जरूरी नहींं है।

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जॉन अब्राहम के साथ प्रेम की पींगे बढ़ाते-बढ़ाते ही बिपाशा को जाने क्या सूझी कि उसने मशहूर फुटबालर रोनाल्डो के गालों का चुम्बनाभिषेक कर दिया। बिपाशा के दीवानों की आँखों में जॉन हमेशा खटकता रहता था इसलिए वे बेहद खुश हुए। एक बोला- चलो मैडम कुछ आगे तो बढ़ी। लाइन में लगे रहो,किनारे पर बैठे रहो, कभी तो लहर आएगी। दूसरे ने कहा-अच्छा हुआ जो जॉन का पत्ता कटा। खामखाँ वह मुझे इन्फीरियरिटी कॉम्पलेक्स दे रहा था। बिपाशा अगर मेरी नहीं है तो जॉन अब्राहम की भी नहीं है। तीसरा बोला-अच्छा हुआ जो बिपाशा के साथ मेरा अफेयर शुरू ही नहीं हुआ। वरना आज समाज में मेरी क्या इज्जत रह जाती? चौथे ने कहा-मैं तो पहले से ही जानता था कि ये लड़की मेरे काबिल है ही नहीं। अगर इसे अच्छे-बुरे का ज्ञान होता तो क्या ये मेरे रहते जॉन के चक्कर में फँसती?
बहरहाल स्व. दुष्यन्त कुमार की ये पंक्तियाँ उन्हें सादर समर्पित-
तुम्हारे पाँव के नीचे जमीन ही नहीं।
ताज्जुब है कि तुम्हें यकीन ही नहीं।।
खैर बिपाशा के प्रेम की ट्रेन का रोनाल्डो आखिरी स्टेशन नहीं है इसलिए वह सैफ अली खान के साथ घूमने लगी है। वह जानती है कि रोनाल्डो एक फुटबालर है। फुटबालर का क्या भरोसा जाने कब किक मार दे। अत: उसे शायद यह लगने लगा है कि वह अब सैफ के साथ ही सेफ है।

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एक हैं सैफ अली खान। अभिनय ने उन्हें इतनी शोहरत नहीं दी जितनी उन्हें अफेयर्स ने दी है। सो सुबह से शाम तक इसी काम में लगे रहते हैं। लोग जैसे कपड़े बदलते हैं वे अपने लफड़े बदलते हैं। दूसरे हीरो जिस रफ्तार से फिल्में साइन करते हैं वे अफेयर साइन करते हैं। वे स्क्रिप्ट देखकर-सुनकर फिल्म साइन करते हैं ये अफेयर साइन करके उसकी स्क्रिप्ट लिखने में जुट जाते हैं। अमृता,विद्या,रोजा,बिपाशा आदि आदि गर्लफ्रेण्ड्स की एक कतार। खुदा खैर करे।

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पार्टनर फिल्म देखते हुए एक अधपढ़ी लड़की ने दूसरी अधपढी लड़की से प्रश्न किया कि इनमें से फुल नर कौनसा है और पार्टनर कौनसा है?

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फिल्म 'बुड्ढा मर गया' को देखने के बाद राखी सावंत के दीवाने उस अस्पताल की तलाश में जुट गए हैं जिसमें उसे बहुत कम कपड़ों में नर्स की नौकरी करते हुए दिखाया गया है। सभी के मन में सामूहिक रोगेच्छा जाग्रत हो गई है। महाभारत काल में जैसे भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, काश उनकी जन्मकुण्डली में भी 'इच्छा रोग योग' होता!

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 नाम तो विवेक ओबेराय है पर विवेक है ही नहीं। ओबे कहकर कोई राय ले तो फिर सामने वाला राय भी क्यों दे। विवेक में अगर विवेक होता तो वह पहले एश्वर्या से शादी करता और बाद में प्रेम। फोकट में सलमान से भी पंगा लिया और जिसके लिए पंगा लिया वह भी छोड़कर चली गई। बेचारा विवेक-घर का रहा न घाट का।

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हम मेरा रंग दे बसंती चोला से चले और फिर चोली के नीचे पहुँच गए। आजकल जिगर की आग से बीड़ी जला रहे हैं। अजीब-अजीब शब्दावली फिल्मी गानों में आ रही है। मैं आज तक समझ नहीं सका कि ये चेनकुली की मेनकुली किस भाषा के शब्द हैं। इन दिनों एक गाना चल रहा है- शक लग लग लग लग लग बूम-बूम। पता ही नहीं चलता कि भाई गाने गा रहा है या किसी के पीछे कुत्ते लगा रहा है?

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सारे अभिनेता अक्सर एक बात कहते हैं कि अमुक फिल्म में उसका ऐसा करेक्टर है या वैसा करेक्टर है। वह पहले करेक्टर पर ध्यान देता और बाद में फिल्म साइन करता है। वास्तविक जीवन में जिनका कोई करेक्टर है ही नहीं वे करेक्टर को लेकर कितने रिजिड हैं?

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हिमेश रेशमियाँ ने टोपी को ग्लेमराइज करके गंजों के हीरो बनने का रास्ता खोल दिया है। अब रितिक की टक्कर अपने पापा से भी हो सकती है।

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फिल्मों में अफेयर वह होता है जिसमें कुछ भी फेयर होता ही नहीं है। इसीलिए आज होता है और कल टूट भी जाता है। होने पर पब्लिसिटी और टूटने पर भी पब्लिसिटी। दोनों हाथ लड्डू। ऐसे में अफेयर वे ही लोग कर रहे हैं जो कि पब्लिसिटी के बारे में ज्यादा अवेयर हैं।

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राम गोपाल वर्मा ने शोले की रीमेक के नाम पर आग बनाई। आग लगने से पहले ही ठण्डी हो गई। फिल्म व्यवसाय से जुड़े लोग नकल को कितनी बेशर्मी से क्रिएशन की संज्ञा देते हैं। अब उनसे यह जानना बहुत इन्टे्रस्टिंग होगा कि आप अगर नकल को क्रिएशन कहोगे तो फिर क्रिएशन को क्या कहोगे? करोड़ों रूपये खर्च करके अगर आपको कुछ करना ही है तो फिर ऐसा कुछ क्यों नहीं करतेे कि दुनिया आपकी नकल करे।
-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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