Saturday, October 17, 2015

क्राइम शो की एंकरिंग

एक दिन किसी दोस्त ने मुझ पर यह सलाहात्मक प्रश्न दाग दिया कि तुम किसी न्यूज चैनल पर क्राइम शो की एकरिंग क्यों नहीं करते? मैंने जवाब दिया कि दोस्त टीवी के प्रोग्राम्स में तो चॉकलेटी चेहरे वाले लड़के-लड़कियाँ एंकरिंग करते हैं। दरअसल मेंरी शक्ल एंकरिंग के लायक नहीं है। मेरा जवाब सुनते ही वह मेरी अवधारणा का खंडन करते हुए बोला-''क्राइम शो की एंकरिंग के लिए तो वे छाँट-छाँट कर बदसूरत वाले चेहरे लाते हैं। तुम तो उसके लिए बिल्कुल फिट हो।'' मैं समझ गया कि जिसके ऐसे दोस्त हों उसे दुश्मनों की क्या जरुरत?
खैर, क्राइम शो का एंकर अपनी कर्कश आवाज और भयानक मुख मुद्रा से डरा-डरा कर आपको अपना प्रोग्राम देखने के लिए मजबूर कर देता है। वह बताता है कि क्यों दिया अमुक औरत ने अपने ही पति को जहर? किसलिए किया उसने अपने सगे भाई का कत्ल? किस डकैती के पीछे निकला घर में काम करने वाली नौकरानी का हाथ? आपका समूचा आत्म विश्वास हिला देने के बाद वह बताता है कि ये सब आप के साथ भी हो सकता है।
किसी भी प्रकार टीवी के प्रोग्राम्स में अपना चेहरा दिखाने की लालसा ने क्राइम शो की एंकरिग के लिए मुझसे जो स्क्रिप्ट लिखवाई जो इस प्रकार है-
चैन से सोना है तो अब जाग जाओ। बीवी को देखो गुस्से में तो बिस्तर छोड़कर भाग जाओ। खबरें तो सिर्फ बहाना है। हमें तो आपको डरा-डरा कर बहादुर बनाना है।
थानेदार के हाथ से होने वाली पिटाई और बीवी के हाथों से होने वाली धुनाई में सिर्फ एक ही फर्क आता है कि थानेदार को तो फिर भी रहम आ जाता है, बीवी को रहम नहीं आता है। बीवी को अपने शोहर पर रहम की जगह सिर्फ वहम आता है। पेश है इस बारे में अहमदाबाद से हमारे क्राइम रिपोर्टर कुमार झँूठा की ये सच्ची रिपोर्ट।
टीवी की स्क्रीन पर हाथ में माइक थामे कुमार झूठा यूं प्रकट होते हैं जैसे कि सत्यवादी हरीश चंंद्र के कलयुगी अवतार सिर्फ वे ही हों। वे सिलसिलेवार बताना शुरू करते हैं-
तीस फरवरी का मनहूस दिन था। (यह बात वही जाने कि यह तिथि किस कलेंडर की शोभा बढाती है) और उसी दिन खेला गया यह खूनी खेल, जिसे देखकर आपके रोंगटें खड़े हो जाएँगे (अगर वे पहले से ही खड़े न हों)।
(अब कुमार अपनी बात को आगे बढाता है-) ये हैं अहमदाबाद के भोला भाई। इनकी पत्नी खूँखार बेन ने ऐसी की इनकी धुनाई कि नाक से खून बह रहा है। चेहरे का हर जख्म कह रहा है कि हमले में बेलनाकार हथियार का जमकर इस्तेमाल हुआ था।
इस बारे में भोला-भाई मूर्छित होने की वजह से कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे लिहाजा हमने खँूखार बेन से बात की
प्रश्न-क्या आप अपने पति को रोजाना पीटती हैं?
उत्तर-रोजाना टाइम किसे मिलता हैं?
प्रश्न-तो आप अपने पति को कब पीटती हैं?
उत्तर-एक दिन छोड़कर सब दिन पीटती हूँ।
प्रश्न-एक दिन छोड़कर एक दिन किसलिए?
उत्तर-इसलिए कि मारने के बाद पुचकारना भी तो पड़ता है।
प्रश्न-मारती हैं तब पुचकारती क्यों हैं?
उत्तर-पुचकारूँगी नहीं तो ये घर छोड़कर भाग नहीं जाएगा। फिर पिटने के लिए खुद पडौसन का आदमी थोड़े ही आएगा। इस काम के लिए तो खुद का पति ही ठीक रहता है जो अपने आप नियम से आए और पिट ले।
आइये देखते हैं कि इस बारे में प्रसिद्ध मनो चिकित्सक डा. भेजा चाटिया के विचार। डॉ. भेजा चाटिया प्रकट होकर बताते हैं-
आजकल शादी दो आत्माओं का पवित्र मिलन नहीं बल्कि दो आत्माओं की भयानक भिडंत का नाम है। किसी भी बीवी को अपने पति को पीटने शौक नहीं होता (एडिक्शन)आदत होती है। दरसल ये तेजी से फैलता हुआ नया रोग है ''प्मोर्स'' (pmors) जिसका फुल फार्म है-पोस्ट मेरीज ओल्ड रिवेंज सिन्ड्रोम। अभी तक इसका उपचार नहीं खोजा जा सका हैं इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखकर सिर्फ अपना बचाव ही किया जा सकता है। जैसे अगर आप टू व्हीलर चलाते हैं हैलमेट पहनकर ही घर में घुसें। फिर घर का माहौल देखकर ही हैलमेट उतारें। और अगर आप कार यूज करते हैं तो पहले से ही आऊटिंग का प्रोग्राम बना लें। खुद घर  में घुसने की बजाय पत्नी को बाहर बुलाएँ। इन छोटी बातों को अपनी आदत बनाकर इस रोग के प्रभावों से बचा जा सकता है।
अभी वक्त है एक ब्रेक का। ब्रेेक के बाद क्राइम रिपार्टर बताने वाला है कि कौन था वह अन्धा चश्मदीद गवाह?

-सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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