Sunday, October 4, 2015

जलवे बाबा पैथी के

बेवकूफ था मुन्नाभाई। डाक्टर बनने के लिए फर्जीवाड़े से एम.बी.बी.एस. करने की जरूरत क्या थी? फिजूल ही इतने पापड़ बेले। पाखण्ड पूर्वक किसी बाबा का रूप धारण कर लेता और शुरू कर देता बाबागिरी। फिर उसे खुले आम डाक्टरी करने से कौन रोकने वाला था?
आजकल हमारे यहांँ डाक्टर बनने का शॉर्टकट है बाबागिरी। बाबा घोषित होते ही रास्ता साफ और मंजिल आसान। फिर आप कभी भी, कहीं भी और कैसे भी किसी भी बीमारी का इलाज कर सकते हैं। डाक्टरों पर सौ कानून है लेकिन बाबाओं पर कोई कानून नहीं। कोई थप्पड़ मारकर तो कोई लात मारकर इलाज कर रहा है। कोई मरीज के शरीर पर कौड़े बरसा रहा है, कोई मरीज के जिस्म में कीलें ठोक रहा है तो कोई ब्लेड से चीरे लगा रहा है। कोई सिर्फ  मरीज के जिस्म को छू देता है तो कोई कबूतर छुआकर कर रहा है इलाज। जो पाखण्डी जितना बड़ा सनकी वह उतना ही बड़ा डाक्टर । वाह! क्या अदा जलवे तेरे बाबा।
मैने एक पाखण्डी बाबा से कहा- आप तो बिना एनेस्थिसिया, बिना आपरेशन थिएटर, ब्लेड से ऑपरेशन कर रहे हैं। यह काम तो एलौपेथी करती है। आप जो कुछ कर रहे हैं वह साइन्स की दृष्टि से गलत है। मेरी बात सुनते ही बाबा बिफर गए। कहने लगे -'जानती क्या है तुम्हारी साइन्स और एलोपेथी? नजर लगने की बीमारी का इलाज है तुम्हारी साइन्स के पास? ऊपरी हवा का इलाज कर सकती है तुम्हारी साइन्स? इनका इलाज एलौपेथी में नहीं, बाबा पैथी में होता है।'  
बाबा की बात सुनते ही मुझ अज्ञानी के चक्षु खुल गए। मैं सोचने लगा कि इन पाखण्डी बाबाओं की बाबागिरी के सामने लगती कहाँ है बेचारे डाक्टरों की डाक्टरी? सप्ताह में हार्ड ड्यूटी के बाद सिर्फ  एक वीकली ऑफ। उसमें भी इमरजेन्सी कॉल पर जाओ। नाइट ड्यटी करो। मेले में ड्यूटी बजाओ। मिनिस्टर का दौरा हो तो एक टाँग पर खड़े रहो। उधर बाबागिरी में एक दिन काम और महीने में उनतीस दिन आराम। मिनिस्टर भी आएगा तो बाबा का आशीर्वाद लेकर जाएगा। डाक्टर के बजाय बाबागिरी में फ्यूचर ज्यादा ब्राइट है।  
भरपूर मेहनत के बावजूद लगातार दो बार पी.एम.टी. की परीक्षा में गच्चा खा चुके एक स्टूडेंट ने मृुझसे पूछा-''अब मैं क्या करूँ?'' मैंने किसी एक्सपर्ट कैरियर कन्सल्टेन्ट की तरह जवाब दिय ''तुरंत बाबा बन जाओ। डाक्टर बनकर अस्पताल खोलने की मंशा का त्याग करो। बाबा बनकर आश्रम खोलने की सोचो। फैला दो अपने चमत्कारों की अफवाह। करोड़ों अंधविश्वासी तुम्हारे इन्तजार में तड़प रहे हैं। भगवान की गुडविल अनलिमिटेड है। उन्हें तो इसे भुनाने की फुर्सत है नहीं। बाबा बनकर तुम ही भुना लो।''
मेरी बात सुनते ही उसकी आँखो में चमक आ गई। उसने पूछा-''लेकिन इससे फायदा क्या है? मैंने जवाब दिया-बाबागिरी से इलाज करने के तो कई फायदे हैं। न तो अस्पताल की बिल्डिंग चाहिए और न ही मँहगी मशीनें। न वार्ड चाहिए न आपरेशन थिएटर। लैब, एक्सरे, सोनाग्राफी की कोई जरूरत ही नहीं। क्वालीफाइड और टे्रन्ड स्टाफ भी नहीं खोजना। बाबा इज आल इन वन। डाक्टर तो कुछ खास बीमारियों के मरीज ही देखता है लेकिन बाबा किसी भी बीमारी का इलाज कर सकता है। कैंसर और एड्स जैसी लाइलाज बीमारियों के शर्तिया इलाज का धडल्ले से दावा कर सकते हैं आप, लेकिन बाबा बन जाने के बाद। बीमारी कुछ भी हो बाबा की वही चुटकी भर भभूत सबका इलाज कर देती है और वह भी बिना फीस के। बाबाओं से घबराकर ही तो समझदार डाक्टर विदेश भाग जाते हैं। बड़े जलवे हैं इस बाबापैथी के।''
अब उसे बाबागिरी में अपना सुनहरा कैरियर नजर आ रहा था। मेरी बातों से सहमत होते हुए उसने अन्तिम प्रश्न पूछा-''लेकिन बिना क्वालिफीकेशन के मैं बीमारी का डाईग्नोसिस कैसे करूँगा? मैंने कहा-''सीधा सा तरीका है। चढ़ावे में आया हुआ कोई नारियल उठाओ। उसे मोबाइल फोन की तरह कान और मुंँह के बीच लगाओ। भगवान से बात करने का ड्रामा करो। उनसे पारामर्श लेकर दे दो वही चुटकी भर भभूत। अरे बेवकूफ। सिर्फ बाबागिरी ही तो एक अकेला ऐसा फील्ड है जिसमें अयोग्यता ही सबसे बड़ी योग्यता है।''


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर)


सुरेन्द्र दुबे (जयपुर) की पुस्तक
'डिफरेंट स्ट्रोक'
में प्रकाशित व्यंग्य लेख

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